।।जाति वही सदा ऊंचा – कबीर की बोली में।।
अशोक वर्मा” हमदर्द”
जो जन निचा देखे औरों को,
उसका जाति कहां ऊंचा।
मन में मैल, वचन में कांटा,
उसका बाट कहां ऊंचा।
तिलक, जनेऊ, माला पहिने,
अंतः भीतर है सूखा।
दया न धरम, न प्रीत जो जाने,
उसका माथ कहां ऊंचा।

राम नाम बस मुख से बोले
तन मन मलिन भया।
धोती पहिरे, गंगा नहाए,
उसका ठाठ कहां ऊंचा।
जिनके अंतर प्रेम न उपजे,
जो बांटे जाति का बिष।
वो चाहे राज करे जग पर,
उसका गात कहां ऊंचा।
कहत कबीर सुनो रे साधो,
जात न पूछो कोई।
कर्म करे जो मानवता का,
वही सदा जाति ऊंचा।

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