अशोक वर्मा “हमदर्द” की एक और मार्मिक कहानी- बिछुड़न 

कोलकाता। सालों बाद जब आलोक अपनी अधूरी मोहब्बत की यादों में गुम था, उसे एक अनजाने नंबर से फोन आया। आवाज दूसरी तरफ से बेहद कमजोर और उदास थी। “आलोक, मैं… जमीला।”

आलोक का दिल तेजी से धड़कने लगा। वह कुछ बोल पाता, इससे पहले जमीला ने कहा, “मैंने तुम्हें सालों तक तलाशा, लेकिन शायद ये हमारी आखिरी बातचीत है। मैं बीमार हूँ और अब जिंदगी ने मुझे ज्यादा वक्त नहीं दिया है।”
आलोक का दिल जैसे टूट गया। वह तुरंत जमीला से मिलने की जिद करने लगा। “जमीला, मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ। मुझे कोई ताकत तुम्हारे पास आने से रोक नहीं सकती।”

जमीला ने उसे मना किया। “आलोक, हमारा मिलना इस दुनिया के लिए कभी आसान नहीं था। अब जब मैं जा रही हूँ, तो मुझे तुम्हारी शायरी में जिंदा रहने दो। मैं तुम्हारी यादों में हमेशा रहूँगी।”
लेकिन आलोक कहाँ मानने वाला था। उसने जमीला का पता ढूंढ निकाला और एक रात अचानक उसके दरवाजे पर पहुँच गया।
जमीला उसे देखकर भावुक हो गई। उसका चेहरा बीमारियों से झुका हुआ था, लेकिन उसकी आँखों में वही चमक थी।

“आलोक, मैंने सोचा था कि मैं तुम्हें आखिरी बार सिर्फ आवाज में सुनूँगी, लेकिन भगवान ने हमें आखिरी बार मिलवा दिया।” दोनों ने उस रात ढेर सारी बातें कीं। आलोक ने उसे अपना लिखा एक खास शेर सुनाया,
“ज़माना चाहे हमें जुदा कर दे,
तेरी यादें हमेशा मेरी रूह का हिस्सा बनेंगी।”

जमीला ने हल्की मुस्कान के साथ कहा,
“हमारी मोहब्बत अधूरी रही, लेकिन ये अधूरापन भी तो एक कहानी है।”

अगले दिन सुबह, जब आलोक उठा, तो जमीला हमेशा के लिए सो चुकी थी। उसने अपनी अंतिम सांस अपने सबसे करीबी इंसान के पास ली।

आलोक ने उसके सम्मान में एक कविता संग्रह प्रकाशित किया, जिसका नाम था “बिछुड़न : अधूरी मोहब्बत का अमर गीत”। यह संग्रह दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ और हर कोई उनकी अमर प्रेम कहानी से जुड़ गया।

गंगा किनारे आज भी लोग कहते हैं कि जब चाँद की रोशनी पानी पर पड़ती है, तो उसमें जमीला और आलोक का प्यार झलकता है। उनका प्यार भले ही अधूरा था, लेकिन उनकी कहानी हर प्रेमी के दिल को छू जाती है।

“मोहब्बत को अंजाम नहीं मिला,
पर उसका असर हमेशा के लिए अमर रहा।”
जमीला की मौत के बाद आलोक की जिंदगी ठहर-सी गई। उसकी आँखों में हर समय जमीला की आखिरी मुस्कान तैरती रहती। वह दिन और रात उस कमरे में बैठे हुए सोचता रहता, जहां जमीला ने अपनी आखिरी साँस ली थी। आलोक ने उसके जाने के बाद कुछ भी महसूस करना बंद कर दिया था। उसकी जिंदगी से जैसे हर रंग और हर उम्मीद खत्म हो चुकी थी।

उसने गंगा किनारे जाना भी बंद कर दिया था। वह जानता था कि वह जगह अब उसे केवल दर्द देगी। लेकिन उसकी कलम रुकी नहीं। वह जमीला की यादों में डूबकर लगातार लिखता रहा। उसकी कविताओं में अब दर्द और गहराई इतनी ज्यादा थी कि पढ़ने वालों की आँखें भीग जाती थीं।

“तू नहीं, पर तेरी खुशबू हर तरफ फैली है,
तेरा चेहरा मेरी यादों के आईने में कैद है।
मैं जी रहा हूँ, पर हर सांस में कमी है,
तेरे बिना ये दुनिया कितनी अधूरी है।”

आलोक ने जमीला की यादों को एक मिशन बना लिया। उसने “बिछुड़न : अधूरी मोहब्बत का अमर गीत” के बाद एक और किताब लिखने का फैसला किया, जिसमें उनकी मोहब्बत के हर पल को संजोया गया। उस किताब का नाम उसने रखा, “तेरी यादों का चिराग।”
लेकिन यादों के सहारे जीना आसान नहीं था। एक रात आलोक ने जमीला के हाथों से लिखा एक छोटा-सा खत पाया, जो शायद वह उसके लिए छोड़ गई थी। उसमें लिखा था- “आलोक, अगर मैं इस दुनिया से चली जाऊं, तो मेरी एक ख्वाहिश पूरी करना। हमारी अधूरी मोहब्बत को इस तरह अमर कर देना, कि हर दिल जो मोहब्बत का मतलब समझता है, हमारी कहानी में खुद को महसूस कर सके। तुम्हारी जमीला”

यह खत पढ़ने के बाद आलोक ने अपने जीवन को एक नया मकसद दिया। उसने तय किया कि वह अपने दर्द को अपनी ताकत बनाएगा और दुनिया को बताएगा कि सच्ची मोहब्बत की ताकत क्या होती है।
आलोक ने जमीला की याद में एक शायरी संगोष्ठी का आयोजन किया, जहाँ दुनिया भर के लोग अपनी मोहब्बत की कहानियाँ और शायरी लेकर आते थे। यह संगोष्ठी सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं थी, यह उन लोगों के लिए एक आसरा था, जो अपनी अधूरी कहानियों में सच्चा प्यार खोजते थे।

हर बार जब वह मंच पर आता, तो अपनी शायरी के जरिये जमीला को महसूस करता। उसने एक बार कहा,
“जमीला मेरे पास नहीं है,
पर उसकी यादें मेरे साथ हैं।
वह मेरे दिल की हर धड़कन में बसी है।
और जब तक मैं जिंदा हूँ,
हमारी मोहब्बत कभी मर नहीं सकती।”

एक दिन आलोक ने फिर से गंगा किनारे जाने का फैसला किया। वही जगह, जहाँ उन्होंने जमीला के साथ कई शामें बिताई थीं। गंगा की लहरों को देखकर वह फूट-फूटकर रो पड़ा। उसे ऐसा लगा जैसे जमीला आज भी उसके पास है, जैसे वह गंगा की उन लहरों में मुस्कुरा रही हो।
उसी रात उसने गंगा किनारे बैठकर अपना आखिरी और सबसे खूबसूरत शेर लिखा :
“तेरी रूह मेरे आस-पास है,
तेरा नाम मेरी हर सांस में है।
जिंदगी तेरे बिना अधूरी है,
पर मोहब्बत का यह अहसास पूरा है।”

आलोक ने अपनी शायरी और कहानियों के जरिए दुनिया को यह समझाने की कोशिश की कि सच्चा प्यार कभी मरता नहीं। भले ही जमीला उसके पास नहीं थी, लेकिन उसकी रूह आलोक के साथ थी। उसने यह भी महसूस किया कि प्यार का सबसे बड़ा रूप बलिदान है।
वह हर जगह अपने शब्दों से मोहब्बत का पैगाम फैलाता रहा। उसकी कहानियां और शायरी सिर्फ शब्द नहीं थीं, वे जिंदा एहसास थे, जो हर दिल को छू जाते थे।

सालों बाद, जब आलोक बूढ़ा हो चुका था, उसने अपने घर में एक छोटी-सी लाइब्रेरी बनाई, जहाँ उसने जमीला की पसंदीदा किताबें और उनकी साझा यादों को सजाकर रखा। उसी लाइब्रेरी में उसने अपनी आखिरी सांस ली। जब लोग उसके कमरे में गए, तो उन्होंने देखा कि आलोक के हाथ में एक कागज था, जिस पर लिखा था : “जमीला, मैं आ रहा हूँ। हमारी अधूरी मोहब्बत अब पूरी होगी। तुम्हारा आलोक।”

आलोक और जमीला की कहानी अधूरी थी, लेकिन उनकी मोहब्बत हमेशा के लिए अमर हो गई। गंगा किनारे अब भी लोग कहते हैं कि जब चाँद की रोशनी पानी पर पड़ती है, तो उसमें आलोक और जमीला की मोहब्बत झलकती है। उनकी कहानी हर प्रेमी के दिल में यह यकीन दिलाती है कि सच्चा प्यार कभी मरता नहीं।
“मोहब्बत अधूरी हो सकती है,
पर उसका असर हमेशा जिंदा रहता है।”
I love you जमीला

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

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