नाबालिग के यौन उत्पीड़न के बाद केस वापस लेने की धमकी, परिवार में भय का माहौल

कोलकाता। उत्तर 24 परगना जिले के अशोकनगर इलाके से एक नाबालिग छात्रा के साथ कथित यौन उत्पीड़न का मामला सामने आया है। पीड़िता और उसका परिवार इस समय गहरे भय और असुरक्षा की भावना से ग्रसित है।

आरोप है कि घटना की शिकायत दर्ज कराने के बाद से उन्हें केस वापस लेने की धमकियाँ दी जा रही हैं। 

इस मामले में हाबरा 2 नंबर पंचायत समिति के कार्यकारी कर्माध्यक्ष प्रबीर मजूमदार उर्फ ‘गुपी’ का नाम सामने आया है, जिन पर परिवार को धमकाने का आरोप लगाया गया है। हालांकि मजूमदार ने इन आरोपों को पूरी तरह बेबुनियाद बताया है और इसे अपनी राजनीतिक छवि को धूमिल करने की साजिश करार दिया है।

  • क्या है पूरा मामला?

मामला इसी वर्ष मार्च महीने का है। नाबालिग छात्रा स्कूल से घर लौट रही थी और रास्ते में एक स्थानीय दुकान से कुछ सामान लेने के लिए रुकी थी। उसी वक्त, कथित तौर पर दुकानदार शफीक मंडल ने उसके साथ यौन उत्पीड़न किया।

छात्रा ने घटना की जानकारी तुरंत अपने परिवार को दी, जिसके बाद उसी दिन अशोकनगर थाने में आरोपी के खिलाफ लिखित शिकायत दर्ज की गई।

पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए आरोपी शफीक मंडल को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन परिवार के अनुसार इसके बाद से ही उन्हें विभिन्न माध्यमों से धमकियाँ मिल रही हैं।

  • राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप

पीड़िता के परिजनों का आरोप है कि हाबरा 2 नंबर पंचायत समिति के कार्यकारी कर्माध्यक्ष प्रबीर मजूमदार (गुपी) द्वारा लगातार उन पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे केस वापस लें।

परिजनों का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, स्थानीय सांसद, और जिला प्रशासन को कई बार लिखित शिकायत भेजी है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

परिजनों का यह भी आरोप है कि सत्ताधारी पार्टी के कुछ स्थानीय नेता आरोपी को बचाने और पूरे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश कर रहे हैं।

  • प्रबीर मजूमदार की सफाई

प्रबीर मजूमदार ने इन सभी आरोपों को राजनीतिक साजिश बताया है। उनका कहना है, “घटना के दिन मैं कश्मीर में था। मुझे फंसाने की कोशिश की जा रही है। मेरी जनप्रतिनिधि के तौर पर एक साफ-सुथरी छवि है, जिसे कुछ लोग धूमिल करना चाहते हैं। अगर मुझ पर लगाए गए आरोप साबित हो जाते हैं, तो मैं कानून की सजा भुगतने को तैयार हूं।”

  • मामले पर सियासत तेज

इस पूरे मामले को लेकर स्थानीय राजनीति में भी उबाल है। वामपंथी दल और भाजपा ने सत्तारूढ़ पार्टी पर निशाना साधा है और पूरे प्रकरण को “लोकतंत्र और महिलाओं की सुरक्षा पर हमला” बताया है।

विपक्षी दलों का आरोप है कि सत्तारूढ़ दल के प्रभावशाली लोग आरोपियों को बचाने में लगे हैं और इसीलिए पीड़िता को न्याय नहीं मिल पा रहा है।

  • परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंता

पीड़िता का परिवार इस समय गहरे तनाव में है। उन्हें डर है कि यदि प्रशासन ने उन्हें सुरक्षा नहीं दी, तो आरोपी और राजनीतिक रसूखदार लोग उन्हें नुकसान पहुँचा सकते हैं। परिवार ने मीडिया के माध्यम से राज्य सरकार और मानवाधिकार आयोग से सुरक्षा और न्याय की मांग की है।

  • सवाल खड़े करती है यह चुप्पी

यह मामला एक बार फिर उस सच्चाई को उजागर करता है कि जब यौन उत्पीड़न के मामलों में राजनैतिक हस्तक्षेप होता है, तो पीड़ितों को न्याय पाना बेहद कठिन हो जाता है।

नाबालिग के परिवार की व्यथा यह बताने के लिए पर्याप्त है कि कैसे सत्ता का डर और सामाजिक दबाव न्याय की राह को अवरुद्ध करता है। क्या अब भी प्रशासन चुप रहेगा या पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए ठोस कदम उठाएगा- यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

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