Murder

अशोक वर्मा “हमदर्द” की मार्मिक कहानी : “साजिश हवस की?”

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। शिलांग की सुबह बहुत शांत होती हैं। बादलों से घिरी हुई वादियाँ, झरनों की धीमी गूंज और पक्षियों की आवाज़ें दिल को एक अजीब सुकून देती हैं। लेकिन उसी शांत माहौल के भीतर एक दिन ऐसी चीख गूंजी, जिसने इंसानियत को शर्मिंदा कर दिया। राजा रघुवंशी की हत्या की खबर जैसे ही शिलांग की घाटियों में फैली, हर जबान पर सिर्फ एक ही सवाल था – “ऐसा शांत स्वभाव का इंसान, जिसका दुश्मन भी उसके व्यवहार का कायल था, उसकी जान किसने ली?”

राजा रघुवंशी – एक नाम, एक शख्सियत जिनके आवाजों में जादू था, जो इनसे एक बार बात कर लेता वो इनका फैन बन जाता।
राजा का असली नाम राज था। मगर गाँव वाले उसे “राजा रघुवंशी” कहते थे। वजह थी उसका स्वभाव – सौम्य, निष्कलंक और राजसी। खेती-बाड़ी से जुड़ा, जमीन से जुड़ा हुआ इंसान था। माँ-बाप की एकलौती संतान और उसी माँ की आंखों का तारा, जिसकी हथेलियों से बचपन में वह गर्म दूध पीता था और कहता, “माँ, जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो एक राजकुमारी लाऊंगा जो तेरे जैसी होगी।”

समय बीता, राज बड़ा हुआ और शहर पढ़ने गया। वहीं उसे सोनम मिली। सोनम – जो फूल नहीं, एक कांटो भरा धोखा थी। ऐसे तो सोनम सुंदर थी, पढ़ी-लिखी थी, लेकिन उतनी ही छल-छद्म से भरी हुई भी। उसकी आंखों में सपने नहीं, साज़िशें तैरती थीं। लेकिन राज नहीं जानता था कि मोहब्बत के लिबास में वह जिसे देख रहा है, वो मोहब्बत नहीं, एक सुनियोजित मकसद था।

राज ने एक दिन घुटनों पर बैठकर सोनम को प्रपोज किया और कहा,
“सोनम, मैं तुझसे बेइंतिहा प्यार करता हूं। तू अगर चाहे तो अपने पूरे गाँव को छोड़ दूँ, लेकिन तुझसे अलग नहीं हो सकता।”
सोनम ने मुस्कुराते हुए हाँ कर दी। क्योंकि उसे अब सिर्फ राज नहीं, उसकी जायदाद, उसकी जमीनें और उसकी भोली मां का भरोसा भी चाहिए था।

शादी धूमधाम से हुई। माँ ने सारे गहने उतार दिए थे – “बहू पहली बार घर आ रही है, सब कुछ इसे दे दो बेटा, अब ये तेरी ज़िंदगी है।”

सोनम ने आग्रह किया था कि शादी के चार दिन बाद वे हनीमून पर शिलांग जाएंगे। राज तो वैसे भी उसे खुश रखने को हर बात पर तैयार था। टिकट बुक हुआ, होटल बुक हुआ – सब कुछ एक परियों जैसी ज़िंदगी जैसा लग रही थी।

लेकिन सोनम का मोबाइल किसी और से जुड़ा था जो इंसान के रूप में एक दानव था। पिशाच था वो आदमी जिसका नाम आदिल था। जिससे सोनम प्यार करती थी। सोनम की असल मोहब्बत कोई और था – आदिल। कॉलेज के दिनों का प्रेमी, जो अपराध की दुनिया से जुड़ा हुआ था। सोनम ने कभी उससे रिश्ता खत्म नहीं किया, बल्कि उससे कहा था – “तुम फिक्र मत करो, मैं तुम्हारे लिए एक अमीर पति ढूंढूंगी, उसका सब कुछ लूट लूंगी और फिर हम दोनों हमेशा के लिए साथ रहेंगे।”

आदिल ने ही तीन हत्यारे भेजे थे शिलांग में – नाम बदलकर होटल में रुके। लेकिन जब उन्होंने राजा रघुवंशी से मुलाकात की, तो उनका मन बदल गया। राज उनके साथ बैठकर खाना खाया, उनसे गाँव की बातें की और एक ने तो यही पूछा,
“भाई, आप किसी NGO से हैं क्या? इतने अच्छे लोग आजकल कहां मिलते हैं?”

राज सिर्फ मुस्कुराया था, बोला, “नहीं भाई, मैं तो किसान का बेटा हूं। बस, अच्छे लोग मेरे मां-बाप थे, उन्हीं से सीखा।”
लेकिन सोनम को सिर्फ खून चाहिए था। जब हत्यारों ने पीछे हटने की कोशिश की, सोनम ने उन्हें साफ धमकी दी – “अगर राज को नहीं मारा, तो मैं खुद जाकर पुलिस को बता दूंगी कि तुम लोग कौन हो। फिर जेल में सड़ते रहना पूरी उम्र।”

एक ने कहा, “पर औरत, वो तुझसे प्यार करता है। तू उसकी पत्नी है। तुझे शर्म नहीं आती?”
सोनम ने सिर्फ हँसकर जवाब दिया – “प्यार…? तुम मर्दों को क्या पता, औरतें किसलिए प्यार करती हैं और किसलिए शादी। मैं जिस्म से नहीं, दिमाग से चलती हूं और मुझे आदिल चाहिए।”
हत्या – जो केवल खून नहीं, भरोसे का कत्ल था

सुबह जब राज और सोनम ट्रेकिंग के लिए निकले, पीछे से तीनों हत्यारे तैयार खड़े थे। राज को जैसे ही गोली लगी, वह वहीं गिर पड़ा। मगर गिरते हुए उसने सोनम को देखा – वो पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी।
आंखों में आंसू थे लेकिन वो दर्द का नहीं, विश्वासघात का था। आखिरी शब्द राज के होंठों पर थे – “माँ…”

अदालत, सबूत और एक चुप्पी… पुलिस जांच में हत्यारे पकड़े गए। एक ने खुद बयान दे दिया कि सोनम ने हत्या करवाई है। कोर्ट में जब सोनम से पूछा गया, “क्या आपको राज से मोहब्बत थी?”
सोनम ने कहा – “नहीं। मुझे उससे नफरत थी। मुझे उससे मोहब्बत नहीं करनी थी। मुझे मेरा आदिल चाहिए था।”

न्यायालय में सन्नाटा छा गया। लोगों ने बाहर निकलकर थूका उस औरत के नाम पर जिसने शादी के नाम पर एक भोलाभाले लड़के की ज़िंदगी लील ली।

औरत की इच्छा का सम्मान बनाम उसकी हवस की छूट… बहस आज भी जारी है। कई कथित “प्रगतिशील” लोग कहते हैं – “औरत की अपनी इच्छा है, उसकी स्वतंत्रता है, उसकी मोहब्बत थी आदिल से, फिर क्यों मजबूर किया गया शादी के लिए?”

लेकिन कोई ये नहीं पूछता कि – “अगर शादी नहीं करनी थी, तो न करती। किसी का खून करना मोहब्बत नहीं, हैवानियत है।” क्या मोहब्बत में जान लेना शामिल है? क्या बेवफाई को भी आजकल ‘स्वतंत्रता’ कहा जाएगा? क्या इंसान की जान की कोई कीमत नहीं?

राज की माँ अब भी दरवाजे पर बैठकर पगली की तरह देखती है। हर आने-जाने वाले से पूछती है, “राज आ गया क्या? मेरी बहू उसे शिलांग घुमाने ले गई थी…”
उसे कौन समझाए – वो बहू, राज को वहां से जिंदा लौटने नहीं ले गई थी।

“मोहब्बत को बदनाम न करो… वो जो खून करे, वो हवस होती है। मोहब्बत में वफा होती है, साजिश नहीं।”

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

(स्पष्टीकरण : यह एक काल्पनिक कहानी है और इसमें दिए गए घटना, स्थान या पात्रों के नाम के साथ अगर किसी जीवित या मृत व्यक्ति विशेष का कोई मेल खाता हो तो यह मात्र संयोग होगा।
इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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