लेखिका डॉ. मीतू सिन्हा जी से एक मुलाकात, वरिष्ठ पत्रकार राजीव कुमार झा के साथ

झारखंड के धनबाद की लेखिका डॉ. मीतू सिन्हा ने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन के अलावा पर्यावरण, स्वास्थ्य और धर्म दर्शन से संबंधित लेखन भी किया है! प्रस्तुत है राजीव कुमार झा के साथ इनकी रोचक बातचीत…

बचपन से ही लेखन कार्य में संलग्न डाॅ. मीतू सिन्हा का जन्म 1 नवंबर 1981 को बिहार के पटना जिले में हुआ। ये सम्प्रति झारखंड शिक्षा परियोजना, धनबाद में सहायक कार्यक्रम पदाधिकारी के पद पर कार्यरत हैं और साहित्य साधना में रत हैं। इन्हें साहित्य, कला और पर्यावरण के क्षेत्र में कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
इनके द्वारा निम्नांकित पुस्तकों के लेखन का कार्य भी संपन्न हुआ है –

1. जानिए मानव अंगों को (कविता संग्रह, सत्साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011)
2. sound pollution and its effect on human being in Jharkhand (Lords publishing house, 2014)
3. शक्ति (lords publishing house, 2016)
4. अजीब आदमी (Book Rivers Publication, 2020 उपन्यास)
5. Sound and its Pollution, a biologist view (BookRiver Publication 2020)

इसके अतिरिक्त दशाधिक साझा संग्रह, पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में भी इनकी कविताएं प्रकाशित हुई हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, नारी चिंतन, गीता तथा दर्शन आदि विषयों पर इनके शोध प्रकाशित हुए हैं।
पर्यावरण साहित्य तथा चित्र कला के क्षेत्र में भी इन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए हैं –
1. Environmentalist of the year 2016
2. Indo global excellence award 2017
3. Environmental biologist of the year 2017
4. World educational excellence award 2017
5. सारस्वत सम्मान 2017
6. इंडियन अचीवमेंट अवॉर्ड 2018
7. मां प्रभावती देवी काव्य विदुषी सम्मान 2019
8. Indian besties award 2021 (environment and literature)

इसके अतिरिक्त शताधिक ऑनलाइन एवं ऑफलाइन काव्य सम्मेलनों में प्रतिभागिता की तथा सम्मान प्राप्त हुए हैं। साथ ही ये मधुबनी चित्रकला में भी सिद्धहस्त हैं। पर्यावरण के विषय पर भी इनकी पकड़ है। संक्षेप में कहें तो गागर में सागर की कहावत सत्य प्रतीत होती है।

प्रश्न : अपने माता-पिता शिक्षा घर परिवार के बारे में बताएँ?
उत्तर : मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूँ। मेरे परिवार में मेरे अतिरिक्त माता-पिता तथा एक छोटी बहन हैं। मेरे पिताजी अजय प्रकाश सिन्हा टाटीसिलवे स्थित इलेक्ट्रिक इक्विपमेंट फैक्ट्री में लेखा शाखा में कार्यरत थे (अब सेवानिवृत्त) तथा माँ गृहणी हैं। पिताजी राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर तथा आध्यात्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। इस कारण परिवार में सदा पिता और दोनों बेटियों के बीच बौद्धिक चर्चा होती रहती थी। विवाह के बाद पति रूपेश कुमार सिन्हा ने हर ओर से सहयोग किया। पुत्र रमित सरैयार भी काव्य रचना करते हैं।

प्रश्न : आप बाल्यावस्था से लेखन में संलग्न हैं! जीवन में साहित्य के महत्व के बारे में बताएँ?
उत्तर : जी मै 12 वर्ष की उम्र से ही साहित्य साधना कर रही हूँ। आज के समय में साहित्य का दायरा ही नहीं बढ़ा, दायित्व भी बढ़ा है। साहित्य की भूमिका मात्र मनोरंजन ही नहीं है वरन् साहित्य का एक सामाजिक दायित्व भी है। समाज को सही दिशा प्रदान करना तथा एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना भी साहित्य का ही दायित्व है।

प्रश्न : अपने लेखन की पसंदीदा विधा के बारे में बताएँ?
उत्तर : जी मैं कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास इत्यादि सभी लिख चुकी हूँ परंतु मुझे कविता लिखने में खासा आनंद मिलता है जी निश्चित रूप से भी व्यक्ति का विधा से सहज संबंध होता है।

प्रश्न : अपने उपन्यास ‘अजीब आदमी’ की विषयवस्तु में आपने किस प्रसंग को प्रस्तुत किया है?
उत्तर : अजीब आदमी एक पारिवारिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया उपन्यास है। जिसका नायक अपने परिवार को संगठित रखने के लिए कई बलिदान देता है। साथ ही अपनी सामाजिक उत्तरदायित्व को भी बड़ी ही स्वच्छता से निभाता है। आज के समाज में टूटते हुए परिवारों के लिए यह एक मार्गदर्शिका साबित होगी।

प्रश्न : आपके लेखन में पर्यावरण चिंतन भी प्रमुख रूप से शामिल रहा है! इसके बारे में जानकारी दीजिए?
उत्तर : जी पर्यावरण मेरा विषय रहा है स्नातकोत्तर में और मेरी रिसर्च भी इसी विषय पर है। ध्वनि प्रदूषण पर विशेष तौर से मैंने काम किया है। इसी विषय पर दो पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हमारे स्वास्थ्य पर हमारे खानपान और पर्यावरण का सीधा सीधा असर पड़ता है, उसके प्रदूषित होने का भी हमारे स्वास्थ्य पर उतना ही असर पड़ता है। इसलिए पर्यावरण को स्वच्छ रखना नितांत आवश्यक है। जहां तक ध्वनि प्रदूषण की बात है तो यह केवल दिखता नहीं लेकिन इसके दुष्प्रभाव नजर आते हैं।

प्रश्न : धनबाद में आप काफी समय से रह रही हैं, यहाँ के साहित्यिक परिवेश की खास बातें क्या हैं?
उत्तर : धनबाद में साहित्य समृद्ध है। इस धरती पर कई साहित्यकारों ने जन्म लिया है। दुख की बात यह है कि इस साहित्य के संरक्षण के लिए यहां किसी प्रतिष्ठित संस्था या सेवक का अभाव है। पूर्व में भी काफी साहित्यकार हुए हैं। खोरठा साहित्य के लिए धनबाद की धरती प्रसिद्ध है। हम कुछ साथी मिलकर धनबाद को भी साहित्यिक धरातल पर उन्नत बनाने का प्रयास कर रहे हैं। सांस्कृतिक तौर पर धनबाद में झारखंड और बंगाल दोनों की संस्कृति देखी जा सकती है।

प्रश्न : आप देश की शिक्षा व्यवस्था के बारे में लिखती रही हैं। वर्तमान सरकार के द्वारा जारी नयी शिक्षा नीति की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर : जी हां मैंने शिक्षा नीति पर कई आलेख लिखें हैं और मैं शिक्षा विभाग में कार्यरत हूँ। शिक्षा ने अपने जीवन में कई बदलाव देखे हैं और उनमें से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 नया और महत्वपूर्ण बदलाव है। शिक्षा नीति से निश्चित ही बच्चे बिना दबाव के अच्छा कर पाएंगे। यह शिक्षा नीति विस्तृत और व्यापक है जो शिक्षा के सभी कोनों को मिलाकर एक सुंदर आकृति प्रदान करने जा रही है।

प्रश्न : आपने गीता के बारे में भी लेख लिखा है! गीता के संदेश का सार क्या है?
उत्तर : जी लिखा है। गीता को शब्दों में व्यक्त करना कदाचित संभव नहीं है। हर व्यक्ति उसके एक करण को लेकर और उस पर अपना शोध करके स्वयं को ज्ञानी समझता है। परंतु परम सत्य तो यह है की गीता के सार को समझने वाले इस संसार में शायद ही कोई हो! मैंने भी जितना समझा है कुछ लिखा है। मैंने इसके कर्म योग पर अपने विचार प्रकट किए हैं। गीता का एक एक अध्याय एक एक पुस्तक के निर्माण करने का आधार है। मेरा प्रयास है कि मैं आगे और भी शोध करके इस पर अपनी पुस्तक लिखूं।

प्रश्न : झारखंड की सुषमा और यहाँ की प्रकृति और परिवेश के संकटों के बारे में अपने विचारों से अवगत कराएँ?
उत्तर : निसंदेह हम सभी जानते हैं कि झारखंड में प्रकृति की गोद में बसा हुआ है खूबसूरत राज्य है और ऐसा होने से हमारी जिम्मेवारी और भी बढ़ जाती है इसे संरक्षित करने की यहां के खदानों में अवैध खनन से कई संकट आ रहे हैं। हमारे जिले धनबाद के झरिया में भूस्खलन से ना जाने कितने लोगों की जानें गई हैं। यदि प्रकृति को संरक्षित ना किया गया तो मनुष्य को इसके भयंकर परिणाम भोगने ही पड़ेंगे।

प्रश्न : हिंदी की कुछ अच्छी कविताएँ जो आपको याद हों उनके बारे में बताइए?
उत्तर : विद्यालय में पढ़ते समय कविताएं याद करते करते कब कविताओं की ओर रुझान हो गया पता ही नहीं चला। मुझे लगता है सबसे अधिक सुभद्रा कुमारी चौहान की झांसी की रानी पढ़कर जोश आता था। उसके बाद हरिवंश राय बच्चन की पथ की पहचान और बीत गई सो बात गई तथा दिनकर जी की शक्ति और क्षमा और कृष्ण की चेतावनी आदि पढ़ी। समेकित रूप से कहूँ तो सभी कविताएं ध्यान आकृष्ट करती थीं पर विशेष रूप से हरिवंश राय बच्चन और दिनकर जी की कविताएं मुझे खास पसंद हैं।

प्रश्न : मधुबनी पेंटिंग में भी आपकी रुचि रही है! इस कला शैली के बारे में बताइए?
उत्तर : जी मैं मधुबनी पेंटिंग करती हूं जो कि बिहार की प्रचलित लोक कला है। पेंटिंग करके आनंद मिलता है। यह काफी प्राचीन लोक कला है, ऐसी लोकोक्ति है कि जब सीताराम का विवाह हुआ था तब जनक जी ने पूरे नगर को इसी तरह की चित्रकला से सजाया था। सो इस चित्रकला में ऐतिहासिक पुट भी है और सामाजिक प्रकटीकरण भी।

प्रश्न : समाज के उत्थान में नारी सशक्तिकरण की भूमिका के बारे में बताएँ?
उत्तर : नारी सशक्तिकरण के विषय में इतना ही कहना चाहूंगी यदि एक स्त्री सशक्त हो पढ़ी लिखी हो और समर्थ हो तो केवल एक परिवार ही नहीं कई पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है।

प्रश्न : शिक्षा के प्रचार प्रसार के नये संदर्भों को रेखांकित करें?
उत्तर : शिक्षा का अधिकार आने के बाद और समग्र शिक्षा अभियान के प्रयासों से शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं, लोगों में जागरूकता आई है। अब सभी पढ़ाई का महत्व समझ रहे हैं। समाज पढ़ाई के महत्व को समझ रहा है। हां करोना काल ने पढ़ाई को बहुत हद तक प्रभावित किया है। ऑफलाइन के साथ-साथ अब ऑनलाइन मोड में भी पढ़ाई के नए-नए तरीके खोजे जा रहे हैं।

राजीव कुमार झा, कवि/समीक्षक

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