कालिदास समारोह में राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र में हुआ कालिदास साहित्य पर व्यापक विमर्श

उज्जैन। मध्य प्रदेश शासन के तत्वाधान में सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन एवं कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कालिदास समारोह के आयोजन के अंतर्गत सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय द्वारा राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का चतुर्थ सत्र आयोजित किया गया।

इस सत्र में कालिदास के साहित्य से जुड़े विभिन्न विषयों और उन पर शोध की दिशाओं पर व्यापक विमर्श हुआ। सत्र की अध्यक्षता पूर्व कुलपति सम्राट विक्रमादित्य विश्वविद्यालय उज्जैन डॉ. बालकृष्ण शर्मा ने की।

कार्यक्रम के सारस्वत अतिथि पूर्व कुलगुरु डॉ. सी.जी. विजय कुमार मेनन केरल, पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित, प्रो. कौशलेंद्र पाण्डेय वाराणसी, प्रो. विरुपाक्ष जड्डीपाल, प्रो. येदुकोंडुलु विशाखापट्टनम, चंद्रभूषण झा दिल्ली, कुलानुशासक प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।

पूर्व कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि कालिदास का काव्य सुकृति दृश्य काव्य है वह हमारे समक्ष विश्वरूप देखने की दृष्टि प्रदान करता है। शोध का शीर्षक ऐसा होना चाहिए कि वह हमें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। जब भी हम किसी कृति या उसके पाठों के बारे में बात करें तो उसके पूर्ववर्ती सिद्धांतों के आधार पर बात करनी चाहिए न कि बाद के सिद्धांतों के आधार पर।

पद्मश्री डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित ने कहा कि चमत्कार का अभाव ही, कालिदास की कृतियों का चमत्कार है। कालिदास एक ऐसा नाम है जिसमें न सिर्फ संस्कृत भाषा प्रेमी जिज्ञासा रखते है बल्कि अन्य भाषा और देश के लोग भी उनके साहित्य को पढ़ते, समझते हैं। उनके साहित्य में शोध की व्यापक संभावना निहित हैं।

पूर्व कुलगुरु सी.जी. विजय कुमार मेनन केरल ने अपने वक्तव्य में कहा कि कालिदास का साहित्य हमें स्वबोध कराता है। उनके साहित्य का प्रत्येक चरित्र हमें समाज में कैसे आचरण करना का उपदेश देता है। कालिदास ने हर विषय को बहुत ही सूक्ष्म दृष्टि के साथ उपस्थापित किया है जो अनुकरणीय है।

प्रो. कौशलेंद्र पाण्डेय, वाराणसी ने अपने वक्तव्य में कहा कि कालिदास के साहित्य में परिवार चिंतन, स्वबोध, आध्यात्मिकता और भौतिकता के तत्व पर्याप्त मिलते हैं, हमें उनका अध्ययन करना चाहिए और उनका अनुकरण करना चाहिए।

प्रो. विरुपाक्ष जड्डीपाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि शोध का सर्वोपरि मूल है प्रयोग विज्ञान। शोध वह है जो हमें सामने दिख रहा है उसे प्रमाणित करना। संस्कृत काव्यों में पाठान्तर करने के कई आधार हो सकते हैं जिनमें मुख्य है पुरातन, आद्य और शुद्ध पाठ का होना।

प्रो. चंद्रभूषण झा, दिल्ली ने अपने उद्बोधन में कहा कि शोध करते समय ध्यान रखना चाहिए कि जो भी कहे वह प्रामाणिक होना चाहिए और ऐसा कुछ न कहे जो अप्रांसगिक हो। हमें गुरुओं, वरिष्ठ जनों से मार्गदर्शन लेकर शोध करना चाहिए।

कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि कालिदास की कृतियां केवल काव्य ही नहीं हैं, वे जीवनमूल्य, दर्शन, राजनीति, समाज और सौंदर्य शास्त्र के लिए आधार ग्रंथ हैं। वे कालिदास की विश्वदृष्टि को प्रतिबिंबित करते हैं। उनका सन्देश है कि जीवन का आधार धर्म और काम का संतुलन है। कालिदास के प्रत्येक शब्द और वाक्य पर सूक्ष्मता से विचार की आवश्यकता है।

इस सत्र में डॉ. शैलेन्द्र कुमार साहू, वाराणसी, डॉ. पूजा उपाध्याय, डॉ. महेंद्र पंड्या, डॉ. राजकिशोर आर्य वाराणसी, युगेश द्विवेदी गुजरात, हर्षराज दुबे भोपाल, डॉ. शशिकांत द्विवेदी वाराणसी, डॉ. पूजा, विपिन कुमार पाण्डेय आदि ने महत्वपूर्ण शोध पत्रों का वाचन किया।

प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा, डॉ. संतोष पंड्या, प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा, डॉ. महेंद्र पंड्या, डॉ. प्रभु चौधरी डॉ.
सर्वेश्वर शर्मा आदि ने किया। संचालन डॉ. गोपालकृष्ण शुक्ल ने किया और आभार प्रदर्शन डॉ. महेंद्र पंड्या ने किया।

ताज़ा समाचार और रोचक जानकारियों के लिए आप हमारे कोलकाता हिन्दी न्यूज चैनल पेज को सब्स्क्राइब कर सकते हैं। एक्स (ट्विटर) पर @hindi_kolkata नाम से सर्च करफॉलो करें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

19 − 7 =