डीपी सिंह की रचनाएं

टीवी पॅ ख़बर चली, बात सबको ये खली अब कोई नज़रों का तारा ही नहीं

डीपी सिंह की रचनाएं

माथे पे मयूर पंख, होठों पे मुरलिया है मृग-सा सरल तन, मन है मृगेन्द्र का

डीपी सिंह की रचनाएं

काशी बोले बम बम डमरू की डम डम हर ओर हर हर की ही ध्वनि

क्यूं रुके हैं तेरे शिथिल चरण

।।क्यूं रुके हैं तेरे शिथिल चरण।। रुक गए जो तेरे शिथिल चरण मृत्यु का होगा

डीपी सिंह की रचनाएं

।।जय श्री राम।। बिगड़े बनेंगे काम आइये अवध धाम जहाँ राम-नाम मय अनमोल थाती है

डीपी सिंह की रचनाएं

जनता को भरमाया, शिक्षा-नीति ने चढ़ाया भारत के युवाओं को नौकरी के झाड़ पे जोड़

रीमा पांडेय की रचना : प्रकृति के दोहे

।।प्रकृति के दोहे।। रीमा पांडेय 1. नदियों का ये जल बहे, ज्यों अमरित की धार।

रुस और यूक्रेन की जंग पर गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा की कविता : जंग रोक लो

।।जंग रोक लो।। गोपाल नेवार,’गणेश’ सलुवा उड़ती हुई धुएं की बवंडर ने सब कुछ खाक

डीपी सिंह की रचनाएं…

राजनीति क्षेत्र-जाति से है प्रीति, बिगड़ी है राजनीति राज बचा और नीति तार तार हो

राष्ट्रीय कवि संगम के मध्य कोलकाता इकाई द्वारा आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी में बही काव्य धारा

“कौन रोक सकता है कवि की उड़ान को” कोलकाता । राष्ट्रीय कवि संगम के मध्य