भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव : मिमिक्री 

।। मिमिक्री।।
किशन सनमुखदास भावनानी

लंबे समय से मिमिक्री का सरताज रहा हूं
हजारों लाखों पुरस्कार पाया हूं
मिमिक्री की कला के साथ नब्बे पार हुआ हूं
शुक्र करता हूं अभी वाला माहौल नहीं देखा हूं

हर व्यक्ति की मिमिक्री करने की
दिल में आज भी जिज्ञासा रखता हूं
कभी किसी के कॉमेंट्स की फिक्र नहीं करता हूं
परंतु अभी का माहौल देखकर बेहद डरता हूं

अब सचेत होते हुए अति डर गया हूं
मिमिक्री एक फंदा न बन जाए सोचता हूं
अभी अपनी कला व फन को दबाता हूं
समय देखकर मौका पलटे ना यह सोचता हूं

मिमिक्री साथियों को यह संदेश देना चाहता हूं
मिमिक्री पर फूंक-फूंक कर कदम रखो अब मैं डरता हूं
चेलों को सख़्ती से अपने संदेश में बतलाता हूं
मिमिक्री ढीली कर लौट के बुद्धू घर को आया हूं

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

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