अमेरिकी पैनल यूएससीआईआरएफ नें चौथी बार भारत को फ़िर ब्लैक लिस्ट में डालने की सिफारिश की है!
वैश्विक नेतृत्व की ओर कोई देश अगर तेजी से आगे बढ़ता है, तो रुकावटें रोड़े आना लाज़मी है – एडवोकेट किशन भावनानी
किशन सनमुख़दास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तरपर जिस तेजी के साथ भारत हर क्षेत्र में झंडे गाड़ते हुआ तीव्रता से आगे बढ़ रहा है तो रुकावटें रोड़े मतभेद आलोचना होना लाज़मी है, क्योंकि जो व्यक्ति विशेष, संस्था, समाज या देश तेजी से प्रगति कर अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हैं, तो ईर्ष्यालुयों की फौजी से जांबाज़ी और ज़ज्बे से मुकाबला करना होता है। क्योंकि ऐसे लोगों की फितरत ही होती है कि हमसे आगे ऐसे कैसे कोई बढ़ सकता है। इसलिए उसकी राहों में कांटे बिछाने से भी ऐसे तत्व नहीं हिचकते, जिसका उदाहरण न केवल हम हर क्षेत्र में देखते हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तरपर भी कई बार ऐसे देखने को मिलता है, क्योंकि वहां की विचारधाराएं कई खेमों में भर्ती होती है। कोई उन्नति को सकारात्मकता से देखता है तो कोई नकारात्मकता से, बीते दिनों हमने मीडिया में देखे कि किस तरह एक अति उन्नत देश का संसद सदस्य और एक हाईप्रोफाइल उद्योगपति भारतीय नीतियों, हमारे पीएम की विचारधारा जो उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है की आलोचना कर नरेटिव खड़ा करने की कोशिश किए थे पर सफल नहीं हो सके।
ठीक उसी तरह अनेक वैश्विक एजेंसियों द्वारा अनेक क्षेत्रों में वैश्विक इंडेक्स जारी किया जाता है जिसमें हमारे देश की वास्तविक स्थिति के अनुकूल अनुक्रमांक नंबर नहीं देकर हमें पड़ोसी देशों के स्तर से भी बहुत नीचे की रैंकिंग दी जाती है, जो वास्तविकता से एकदम परे और भिन्न होती है जिसका उदाहरण हमने वैश्विक भुखमरी सूचकांक, धार्मिक स्वतंत्रता सूचकांक सहित अनेक वैश्विक सूचकांकों में देखने को मिलती है। चूंकि दिनांक 2 मई 2023 कोअमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधीन यूएस कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम ने लगातार चौथी बार अपनी वार्षिक सिफारिश में भारत को फिर ब्लैक लिस्ट में डालने की सिफारिश की है जो मेरा मानना है पूर्व नियोजित सोच का नतीजा हो सकता है, जिसे भारत सरकार द्वारा गलत बताकर अफसोस जाहिर करना लाज़मी है।
उधर भारत के बढ़ते रुतबे, प्रतिष्ठा को हम देखें तो अमेरिकी राष्ट्रपति के सिफारिश पर भारतीय मूल के अजय बंगा 2 जून 2023 से विश्व बैंक के प्रमुख का पद संभालेंगे तथा ब्रिटिश के प्रधानमंत्री सहित अनेक वैश्विक संस्थाओं, कंपनियों, कारपोरेट जगत, राजनीति में प्रमुख पदों पर भारतीय मूल के व्यक्ति ही पद आसीन हैं जो रेखांकित करने वाली बात है, और भारत की छवि हमेशा धर्मनिरपेक्षता जहां हर धर्म समुदाय को अन्य देशों की तुलना में अधिक सुरक्षित वह खुशहाली है। हालांकि इस सिफारिश को मानना या रिजेक्ट करना अमेरिकी सरकार के अधीन है और वहां के राष्ट्रपति और हमारे पीएम की अभूतपूर्व दोस्ती से इस सिफारिशों का मूल्यांकन शून्य है।
परंतु फिर भी भारत की प्रतिष्ठा का सवाल है और भारत अमेरिका की बढ़ती दोस्ती, व्यापार, साझेदारी,वैश्विक नेतृत्व की बढ़ती स्थिति में एक दूसरे पर इस प्रकार की सिफारिशों से विक प्वाइंट उभरते हैं जो बढ़ती साझेदारी में रोड़ा बन सकते हैं। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे अमेरिकी पैनल यूएससीआईआरएफ ने भारत को चौथी बार फिर ब्लैक लिस्ट में डालने की सिफारिश की है जो तथ्यों से परे है।
साथियों बात अगर हम यूएससीआईआरएफ 2023 सिफारिशों की करें तो, अमेरिकी आयोग की साल 2020 से ही मांग है कि भारत को विशेष चिंता वाले देश के रूप में शामिल किया जाए। बता दें कि किसी देश पर यह टैग लगने का अर्थ है कि सरकार धार्मिक स्वतंत्रता का नियमित रूप से गंभीर उल्लंघन कर रही है। अगर अमेरिका विदेश मंत्रालय किसी देश पर यह टैग लगाता है तो उस देश पर अमेरिका से आर्थिक लेन देन पर प्रतिबंध भी लगते हैं और ये लेबल उन देशों पर लगाई जाती है जो धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं। यूएससीआईआरएफ ने आरोप लगाया है कि केंद्रीय सरकार ने भी आलोचनात्मक आवाजों को दबाना जारी रखा। विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनकी ओर से वकालत करने वालों को। इनमें निगरानी, उत्पीड़न, संपत्ति के विध्वंस और गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत हिरासत के माध्यम से और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को लक्षित करना शामिल है।
यूएससीआईआरएफ 2023 ने अपनी रिपोर्ट के भारत खंड में आरोप लगाया है कि 2022 में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति लगातार खराब होती गई। पूरे साल के दौरान, भारत सरकार ने राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों पर धार्मिक रूप से भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया और लागू किया। इनमें धर्मांतरण, अंतर्धार्मिक संबंधों, हिजाब पहनने और गौ हत्या को लक्षित करने वाले कानून शामिल हैं, जो मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और आदिवासियों (स्वदेशी लोगों और अनुसूचित जनजातियों) को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने मांग की है कि भारत को उस काली सूची में डाला जाए, जहां धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्यधिक प्रताड़ना करने वाले मुल्कों को रखा जाता है।
इस आयोग को धार्मिक स्वतंत्रता के मामले में सिफारिश करने का अधिकार है लेकिन उसे मानना या ना मानना अमेरिकी सरकार पर निर्भर करता है। भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध तेजी से गहरे हो रहे हैं, लिहाजा इसकी संभावना कम ही है कि भारत के बारे में आयोग की सिफारिश को माना जाएगा। पिछले चार साल से लगातार आयोग यह सिफारिश कर रहा है। अमेरिका का विदेश मंत्रालय हर साल ऐसे देशों की सूची जारी करता है, जहां धार्मिक स्वतंत्रता को खतरे में माना जाता है। इस कथित ब्लैक लिस्ट में शामिल देशों पर हालात में सुधार ना होने की स्थिति में प्रतिबंध लगाए जाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। धार्मिक स्वतंत्रता आयोग एक स्वतंत्र संस्था है जिसके सदस्य अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। इस आयोग ने जिन देशों को काली सूची में डालने की सिफारिश की है, उनमें से चीन, ईरान, म्यांमार, पाकिस्तान, रूस और सऊदी अरब के लिए उसे मान लिया गया है, लेकिन आयोग चाहता है कि भारत, नाइजीरिया और वियतनाम समेत कई और देशों को भी इस सूची में डाला जाए।
रिपोर्ट कहती हैं, भेदभावपूर्ण कानूनों के इस्तेमाल ने एक तरह की संस्कृति तैयार कर दी है जिसमें भीड़ या समूहों द्वारा धमकियां देना, हिंसा करना और अभियान चलाना आम हो चला है। कमिशन ने पहले भी 3 बार भारत को ब्लैक लिस्ट करने का सुझाव दिया था जिसे वहां की सरकार ने स्वीकार नहीं किया। इस पर कमिशन ने बाइडेन की सरकार पर सवाल उठाए हैं। कमिशन ने कहा है कि बाइडेन भारत के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकामयाब रहे हैं। अमेरिका हमारे सुझावों के बावजूद भारत से रिश्ते मजबूत कर रहा है। 2022 में दोनों देशों के बीच होने वाला व्यापार 98 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है। बाइडेन भी कई मौकों पर पीएम से मिल चुके हैं।
साथियों बात कर हम भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के सख़्त टिप्पणी की करें तो, यूएससीआईआरएफ की वार्षिक रिपोर्ट पर कहा कि अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग ने इस बार अपनी वार्षिक रिपोर्ट में भारत के बारे में पक्षपातपूर्ण और किसी तत्व से प्रेरित टिप्पणियों को जारी रखा है। हम तथ्यों की ऐसी गलत बयानी को खारिज करते हैं। इससे केवल यूएससीआईआरएफ की छवि को ही नुकसान पहुंचता है। हम ऐसे प्रयासों से दूर रहने और भारत की बहुलता, इसके लोकतांत्रिक लोकाचार और इसके संवैधानिक तंत्र की बेहतर समझ विकसित करने का आग्रह करते हैं।
साथियों बात अगर हम अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संगठन द्वारा इसकी आलोचना की करें तो, अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संगठन, फाउंडेशन ऑफ इंडियन एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (एफआईआईडीएस) ने यूएससीआईआरएफ की पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट के लिए आलोचना कीएफआईआईडीएस के खांडेराव कांड ने एक बयान में कहा कि यूएससीआईआरएफ अनुमानित रूप से सीपीसी में शामिल करने के लिए भारत के खिलाफ अपने वार्षिक मामले को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा है, इसके आंकड़ों में गलत जानकारी दी गई है जो अनुमानित रूप से चूक और विशेष अभियान को दर्शाता है।