श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’ की कविता : वृद्धावस्था

।।वृद्धावस्था।।

श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’

अभी तो चेहरे पर झुर्रियां आएंगी
गाल पोपले हो जाएंगे
खुद को सहारा देने वाली छड़ी
ढ़ूंढने में घंटे बीत जाएंगे
गर्म चाय की प्याली को
आंखें यूं ढूढेंगी मानो
अपने किसी के आने का समय हो गया है
पर…
उसके आने की आहट तक नहीं हो रही है
दवाई के पत्ते से आखिरी टेबलेट खाकर
उसके नए पत्ते की
प्रतीक्षा के दिन भी आएंगे
आंखों की रोशनी रूठ चुकी होगी,
जिसे चश्मे से एक हद तक मना लिया जाएगा
वही चश्मा पोते पोती के खेल में शामिल होकर उनका दिल बहलाएगा
‘पिताजी आप भी न किस ज़माने की बात कर रहे हैं…’
ये अल्फाज कानों में आएंगे ही
…ऐ दिल तू संभल जा
वो जो आने वाला लम्हा है
वो भी मजेदार होगा
बस उन लम्हों में तुझे ढलना होगा
बीते लम्हों को भुलाकर
जीवन के रंगमंच में
मिली नई भूमिका को
तुम्हें ऐसे निभानी है
जैसे खुशहाल जीवन जी रहे हो…
तुम्हें ऐसे जीना होगा मानो कोई बेहतरीन अदाकार बड़ी शिद्दत से किसी जिंदादिल किरदार को निभा रहा हो…
तेरी-मेरी हो, इसकी हो या उसकी
कमोबेश सबकी यही कहानी है
बस इतना याद रखना है
जीवन के रंगमंच पर अपनी भूमिका को यादगार बनाने का अंतिम और सुनहरा है जीवन का यह हिस्सा
जिसे दुनिया कहती हैं
वृद्धावस्था…..।

Shyam saluawala
श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

17 − 12 =