।।जीवन चलता है तो चलने दो।।
रामा श्रीनिवास ‘राज’
यदि जीवन चलता है तो चलने दो जैसे तैसे,
रीत निराली अपना भी कटने दो जैसे तैसे।
शीशे की खोज हुई देख चेहरा गति को पढ़ लो,
चंचल मन को स्वतः रंग भरने दो जैसे तैसे।।
अति स्वपन देखना मूल दस्तूर जहाँ सीरत का,
अर्जुन सा एक लक्ष्य ऐसा साध चलो कीरत का।
दुर्भाग्य नहीं सजता हर जीवन में स्मरण रहे,
ढृढ़ मार्ग में काट पर्वत अभिमानी वह तीरथ का।।
मानव जीवन का मोल विसाक्त कभी नहीं होता,
शूल कंकड़ जो पहचान लिया दुर्गति नहीं होता।
खाकर ठोकर संभल जाने की विधि ही जीवन है,
बूझकर जिसने परित्यागा आदमी नहीं होता।।
क्यों प्रभु का पूरक आदम ही कहलाता है कहो,
पंच इंद्रियों का जब समावेश सब जीवों में कहो।
प्रायः सबों में जीने की क्षमता कौसर भरी उसने,
मनुज मति को मिला श्रेष्ठतम वर धरनी हेतु कहो।।
ईश्वर की चाह भुला रहे लोभी कैसे कैसे,
बाँट रहे हो क्या क्या, व्यस्त भी कैसे कैसे।
स्वार्थ के मोह में कैसे जकड़ गये हाय रे मनु,
अंग तुम सुरक्षा की दुनिया देख रही कैसे कैसे।।