मरने वाले किसानों का कोई डेटा नहीं, इसलिए मुआवजे का सवाल ही नहीं : केंद्र सरकार

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने मंगलवार को कहा कि तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर साल भर से चल रहे आंदोलन के दौरान कितने किसानों की मौत हुई है, इसका कोई आंकड़ा नहीं है, इसलिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रश्न ही नहीं उठता। केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में सांसदों के एक समूह द्वारा ‘कृषि कानूनों के आंदोलन’ पर उठाए गए सवालों के जवाब में यह बात कही। अन्य सवालों के अलावा, सांसद आंदोलन के संबंध में किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों की संख्या जानना चाहते थे।

इसके साथ ही राष्ट्रीय राजधानी में और उसके आसपास चल रहे आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों की संख्या पर डेटा और क्या सरकार का उक्त आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिजनों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का विचार है, इसकी जानकारी भी मांगी गई थी। मंत्रालय का इस पर स्पष्ट उत्तर था कि इस मामले में उसके पास कोई रिकॉर्ड नहीं है और इसलिए वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रश्न ही नहीं उठता। इस प्रश्न के पहले भाग में, जवाब देते हुए विस्तृत रूप से बताया गया था कि कैसे सरकार ने स्थिति को काबू में करने के लिए किसान नेताओं के साथ 11 दौर की चर्चा की है।

तीन विवादास्पद कानूनों को निरस्त करने की मुख्य मांग के अलावा – जिन्हें अब आधिकारिक तौर पर संसद द्वारा निरस्त कर दिया गया है – एक साल से अधिक समय से चल रहे आंदोलन के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने और मृतक किसानों को मुआवजे का भुगतान करने की भी मांग की गई है। किसान आंदोलन के दौरान मृतक किसानों के परिजनों के लिए पुनर्वास की मांग भी की गई है। बता दें कि किसान नेताओं ने आंदोलन के दौरान मृतक किसानों को शहीद किसान कहा है। आंदोलन का नेतृत्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया है कि पिछले साल से आंदोलन के दौरान लगभग 700 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं।

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