ढ़ाबेवाले भाईसाहब (सरदार जी)

रीमा पांडेय : आज मेरी कलम ढ़़ाबेवाले भाईसाहब अर्थात सरदार जी को याद कर रही है। ये भाईसाहब ईस्ट मार्केट चित्तरंजन में एक साफसुथरा तथा सुरूचिपूर्ण ढ़ाबा चलाते हैं, जो बहुत लोकप्रिय है। सरदारजी भाईसाहब मृदुभाषी, मिलनसार तथा नेकदिल इंसान हैं, निस्वार्थ भाव से किसी की मदद करना इनकी विशेषता है।

कोरोना की दूसरी लहर जब अपने चरम पर थी, मेरा बेटा भी उसकी चपेट में आ गया। बेटे को व्यक्तिगत परेशानियों की वजह से चित्तरंजन में ही रहना पड़ा, मैं भी कोलकाता से आ गयी। बेटे को बीमार देख मैं बहुत परेशान और दुखी हो गयी थी। उन दिनों परिस्थितियाँ कुछ ऐसी विपरीत हो गयीं थी कि मुझे सबकुछ अकेले ही संभालना पड़ा। यहाँ की रेलवे कालोनी बहुत बड़ी है तथा बाजार-हाट, चिकित्सा की सारी सुविधाएँ घर से बहुत दूर स्थित है। जिसे गाङी चलाने नहीं आती, उसके लिये आवश्यक सुविधाएँ सहजता से उपलब्ध नहीं है।

ऐसी विकट परिस्थिति में सरदार जी भाईसाहब ने इतनी मदद की, जिसे मैं आजीवन नहीं भूल सकती। इस अनजान जगह पर वे किसी निकट सम्बन्धी से भी बढ़कर मददगार साबित हुए। बेटे का कोई टेस्ट करवाना हो या बाजार से कुछ मँगवाना हो, उनका कोई कर्मचारी बाइक लेकर हाजिर हो जाता जबकि उनके ढ़ाबे में बड़ी व्यस्तता रहती थी। एक भी कर्मचारी कम हो तो निश्चित ही उन्हें असुविधा होती होगी।

वे कहते “आपलोग चिंता न करें, मैं हूँ ना।” हमें कोई भी जरूरत हो, उनकी सहायता हमारे दरवाजे तक पहुँच जाती। उन्होंने हमें महसूस नहीं होने दिया कि हम अनजान जगह पर हैं और असहाय है। एक फोन करते ही उनका एक कर्मचारी हाजिर हो जाता।उन दिनों अति कार्यभार से मैं दबी हुई थी। घर के सारे काम, बेटे की देखभाल, शिक्षिका के रूप में ऑनलाइन कक्षाएँ लेना, इतना सबकुछ सहज नहीं था।

इस मशीनी युग में जब लोगों की संवेदनाएँ समाप्त होती जा रहीं हैं, सरदार जी जैसे लोग भी हैं तो निस्वार्थ सहयोग की भावना रखते हुए सच्चाई और ईमानदारी से जीवन व्यतीत कर रहें हैं। ऐसे नेक दिल लोगों ने ही समाज की डूबती नैया को किनारे लगाया है। ईश्वर से विनती है कि भाईसाहब स्वस्थ, समृद्ध और दीर्घायु हों तथा समाज के पथप्रदर्शक बनें रहें।

 

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