पचास कैनवास चित्रों की लगेगी प्रदर्शनी 21 जुलाई को गमछातपार शिल्पन्यास में
वाराणसी। सांस्कृतिक राजधानी नगरी काशी में देवाधिदेव महादेव का दृश्यमान भूलोक और गंगा का प्रवाह मानव के मन मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करता है तभी काशी अर्थात वाराणसी में सबका मन रमता है और यहां आने को सभी लालायित रहते हैं। वाराणसी जहां की सुबह निराली है वहीं जीवन का अंतिम सत्य का साक्षात्कार भी कराती है। वाराणसी में इन दिनों अक्षय कला यात्रा -2 मघ्यम श्रृंखला में भाग ले रहे देशांतर के 24 कलाकारों से साक्षात्कार उनके कला सृजन दृश्यमान कैनवास चित्रों के माध्यम से पहली बार दर्शन हो रहे हैं। आयोजक हीना भट्ट आर्ट वेंचर्स, पुणे के कलाकार व क्यूरेटर हीना भट्ट व संयोजक चित्रकार अनिल शर्मा के प्रयास से। कला और कलाकारों का संरक्षण के प्रयास ऐतिहासिक रहा है अर्थात भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो कला और कलाकारों का संरक्षण का अर्थ ही है हमारी संस्कृति की रक्षा करना।
ऐसी ही सोच रखती है पुने की कलाकार हीना भट्ट, जिसे बचपन से पिता ने कला को देखते का एक नया नजरिया दिया। वो खुद एक कलाकार हैं, तो जाहिर है कला और कलाकार का महत्व बखूबी समझती है। अक्षय कला यात्रा की पहली कड़ी की शुरुआत दक्षिण भारत में बैंगलोर में की थी। दूसरी कड़ी में वाराणसी से गंगा तट पर स्थित राम छाटपार शिल्प न्यास, महेश नगर कालोनी में पांच-दिवसीय कला शिविर में कलाकृतियां कलाकारों का प्रतिनिधित्व करते दिखाई देती है। भोपाल से वरिष्ठ कलाकार युसूफ के रेखांकित चित्र ऐसा प्रतीत होता है कि वो चित्र लिखते हैं। झारखंड से वरिष्ठ कलाकार हरेण ठाकुर ने प्रकृति और जीवन को इस प्रकार संयोजित किया है जिसमें प्राकृतिक संपदा और जीवन में के मूल तत्वों के विघटन को हम देख पाते हैं।
लखनऊ से भूपेंद्र अस्थाना के चित्र मौलिकता और सृजनात्मकता का आभाष कराती है। चित्रों में काले स्याह रेखाओं की प्रधानता बिम्ब को उभारने में और रेखाओं की विविधता रूपाकृति के साथ ऐसे समायोजित होती दिखाई पड़ती है, जिससे उसकी मौलिकता के साथ साथ कलाकार की सृजनात्मक दृष्टिकोण को उजागर करती है। रूपाकृति भी ऐसी की पृष्ठभूमि कोरे मन को दर्शाता है, जिस पर पैदा होने वाले भाव उभरते हुए प्रतीत होते हैं।
जबलपुर से सुप्रिया अंबर के आकृति मूलक चित्रों में मेहनतकश महिलाओं का दैनिक जीवन का दर्शाते हुए दिखाया गया है। मध्य प्रदेश के बैगा जनजाति की गोदना कला को भी महत्व दिया गया है, रंगों में ताजगी और चटकीले देशजपन का आभास मनमोहक है। वाराणसी से डा सुनील विश्वकर्मा के चित्रों में रामनगर की राम लीला का और काशी के घाटों का झलक चिरपरिचित अंदाज में कराती है। सुंदर संयोजन और संस्कृति की झलक इनके चित्र में प्रदर्शित होता है। अलीगढ़ से राजीव शिकदर के चित्रों में काशी के प्रभाव व भावों का दर्शाते हुए नजर आते हैं। समस्तीपुर बिहार से मो सुलेमान जहां हिंदू देवी-देवताओं का चित्र बनाने के लिए ख्यात है , वहीं गणेश और नंदी का चित्रण बड़े ही आकर्षक ढंग से किया और कैनवास पर खाली सपाट सतह चित्र को उभारने में कलाकार की सफलता को दर्शाता है। खैरागढ से अम्रीश मिश्रा के स्याह रेखांकित चित्र में जीवन के कोमल भावनाओं का चित्रण करते हैं।
भोपाल से भूरी बाई के चित्रों में झबुआ जिले की भील लोक चित्र का प्रभाव व भावों का मिश्रण दिखाई देता है।उत्तराखंड से रविपासी सामाजिक विसंगतियों को अपने चित्रों का विषय चुना है। गाजियाबाद से अनूप कुमार चंद के कैनवास विलुप्त प्राय वन्यजीव प्राणी का संरक्षण का संदेश छिपा है, रंगों में मोनोक्रोमेटिक प्रभाव के साथ साथ संयोजन प्राकृतिक प्रभाव लिए भी है।
जयपुर से सुरेश जांगिड़ ने अपने कैनवास पर काशी की आघ्यात्मिकता को संस्कृत श्लोक व देवाकृति को रुपायित किया है, साथ यहां राजस्थानी चित्र शैली की झलक दिखाई देती है। पटना से अनिता कुमारी के चित्र प्रकृति के सृजनात्मक प्रभाव व बसंत के रंगों को संयोजित किया है। संयोजक व चित्रकार अनिल शर्मा के चित्रों में काशी के मनमोहक दृश्यों का सजीव व आकर्षक चित्रण दिखाई पड़ता है साथ ही कैनवास पर अमूर्तन प्रभाव के साथ रंगों का अनूठा संयोजन दर्शको को अपने ओर खींच लेती है।
कला शिविर की क्यूरेटर व कलाकार हीना भट्ट के तैल चित्रों में प्रकृति की झलक के साथ साथ उन पर प्रकाश की पड़ती किरणों की आभा का अनुपम सौन्दर्य बौध आकर्षित करती है। शिविर में बने लगभग पचास कैनवास चित्रों की प्रदर्शनी 21 जुलाई को होगी।
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